इक्विटी और म्यूचुअल फंड
इक्विटी और म्यूचुअल फंड में निवेश क्यों करें?
FINANCIAL
Adv.Vineet Umrav
8/29/20251 min read
इक्विटी और म्यूचुअल फंड में निवेश क्यों करें?
1. बेहतर रिटर्न:
• FD/गोल्ड: फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) में 6-7% सालाना रिटर्न, गोल्ड में औसतन 8-10% (अस्थिरता के साथ)।
• इक्विटी/म्यूचुअल फंड: लंबी अवधि (7-10 साल) में 12-15%+ औसत रिटर्न। यह महंगाई (इन्फ्लेशन, ~6%) को आसानी से मात देता है।
नोट: पिछले 10 साल में BSE सेंसेक्स ने ~13% CAGR दिया है (स्रोत: BSE डेटा, 2025 तक)।
2. छोटी रकम से शुरुआत:
• रियल एस्टेट/गोल्ड: लाखों रुपये की जरूरत, जो हर किसी के लिए संभव नहीं।
• म्यूचुअल फंड: ₹100-500 महीने से SIP शुरू करें। इक्विटी में डायरेक्ट शेयर खरीदने के लिए भी ₹1000 से शुरुआत संभव।
3. तुरंत तरलता:
• प्रॉपर्टी/गोल्ड: बेचने में हफ्तों या महीनों लग सकते हैं, साथ ही लेन-देन की लागत अधिक।
• इक्विटी/म्यूचुअल फंड: 1-2 कार्यदिवस में पैसे बैंक खाते में। मोबाइल ऐप से तुरंत बेचें।
4. टैक्स बचत (2025 के नियमों के अनुसार):
• FD: ब्याज पर 10-30% टैक्स, आय के स्लैब के हिसाब से।
• ELSS म्यूचुअल फंड: सेक्शन 80C के तहत ₹1.5 लाख तक टैक्स छूट। इक्विटी और MF में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) पर ₹1.25 लाख से अधिक के मुनाफे पर 12.5% टैक्स (2025 बजट अपडेट)।
• नोट: शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) पर 20% टैक्स लागू।
5. पेशेवर मैनेजमेंट:
• स्वयं का बिज़नेस/फिजिकल एसेट: समय, मेहनत और जोखिम आपका। मार्केट ज्ञान की जरूरत।
• म्यूचुअल फंड: SEBI-रेगुलेटेड फंड मैनेजर आपके पैसे को डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं। डायरेक्ट इक्विटी में भी रिसर्च टूल्स और ऐप्स मदद करते हैं।
6. सुविधा और लचीलापन:
• ई-इन्वेस्ट: मोबाइल ऐप्स से 24x7 निवेश।
• SIP/SWP: सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) से ऑटोमेटिक निवेश, सिस्टमेटिक विड्रॉल प्लान (SWP) से नियमित आय।
E-Invest के फायदे (2025 में): 📲 24x7 ऐप एक्सेस: शेयर, म्यूचुअल फंड, ETF, या सरकारी बॉन्ड 2 मिनट में खरीदें।
📈 रियल-टाइम ट्रैकिंग: पोर्टफोलियो की ग्रोथ और मार्केट अपडेट्स लाइव देखें।
🔄 ऑटोमेटिक निवेश: SIP सेट करें, पैसा अपने आप बढ़ता रहे।
🔐 सुरक्षित: SEBI-रेगुलेटेड प्लेटफॉर्म, UPI और बैंक-ग्रेड सुरक्षा।
क्यों जरूरी?
• महंगाई का दबाव: इन्फ्लेशन 6-7% के आसपास, FD जैसे विकल्प आपके पैसे की वैल्यू घटाते हैं।
• मार्केट ग्रोथ: भारत की GDP ग्रोथ 6.5-7% (IMF अनुमान, 2025), जो इक्विटी मार्केट को सपोर्ट करती है।
• डिजिटल क्रांति: डीमैट अकाउंट्स की संख्या 2025 में 15 करोड़+ (NSE डेटा), यानी निवेश अब आम आदमी की पहुंच में।
फाइनल: "FD, गोल्ड, या प्रॉपर्टी में पैसा फंसाने की बजाय इक्विटी और म्यूचुअल फंड चुनें। यहाँ आपका पैसा लिक्विड, टैक्स-स्मार्ट, और लंबी अवधि में 10x ग्रोथ की संभावना वाला है। आज ही FREE डीमैट अकाउंट खोलें और निवेश की दुनिया में कदम रखें!"
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म्यूचुअल फंड/इक्विटी मार्केट में निवेश करते समय वित्तीय सलाहकार क्यों आवश्यक हैं?
1. निवेश विकल्पों की जटिलता और विविधता
म्यूचुअल फंड और इक्विटी मार्केट में कई प्रकार की योजनाएँ, सेक्टर, और निवेश श्रेणियाँ होती हैं। हर व्यक्ति के वित्तीय लक्ष्य, जोखिम सहनशीलता और निवेश अवधि अलग होती है। एक वित्तीय सलाहकार आपकी प्रोफाइल के अनुसार उपयुक्त फंड या शेयर चुनने में मदद करता है, जिससे आपका निवेश लक्ष्य के अनुरूप और संतुलित रहता है।
2. जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन
इक्विटी मार्केट और म्यूचुअल फंड दोनों में बाजार की अस्थिरता (वोलेटिलिटी) और जोखिम जुड़े रहते हैं। सलाहकार आपके जोखिम प्रोफाइल का मूल्यांकन कर सही एसेट अलोकेशन और डाइवर्सिफिकेशन की रणनीति बनाते हैं, जिससे नुकसान की संभावना कम होती है।
3. टैक्सेशन और रेगुलेटरी गाइडेंस
म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश पर टैक्स की जटिलताएँ होती हैं (जैसे कैपिटल गेन टैक्स, डिविडेंड टैक्स आदि)। सलाहकार टैक्स प्लानिंग, टैक्स बचत और निवेश की सही टाइमिंग में मार्गदर्शन कर सकते हैं, जिससे आपके रिटर्न अधिकतम हो सकते हैं।
4. प्रोफेशनल मैनेजमेंट और समय की बचत
सीधे शेयर बाजार में निवेश के लिए कंपनियों की वित्तीय स्थिति, सेक्टर ट्रेंड, और बाजार की चाल का विश्लेषण जरूरी होता है। अधिकांश निवेशकों के पास इतना समय और विशेषज्ञता नहीं होती। सलाहकार या फंड मैनेजर आपके निवेश को प्रोफेशनल तरीके से हैंडल करते हैं।
5. इमोशनल डिसीजन से बचाव
बाजार में गिरावट या तेजी के समय निवेशक अक्सर भावनात्मक निर्णय लेते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है। सलाहकार आपको लॉन्ग टर्म दृष्टिकोण और अनुशासन बनाए रखने में मदद करते हैं।
6. निवेश की रणनीति और पोर्टफोलियो रिव्यू
वित्तीय सलाहकार समय-समय पर आपके पोर्टफोलियो की समीक्षा कर, बदलती परिस्थितियों के अनुसार उसमें बदलाव की सलाह देते हैं। इससे आपका निवेश लक्ष्य के अनुसार ट्रैक पर रहता है और बाजार के उतार-चढ़ाव का प्रभाव कम होता है।
"फाइनेंशियल सलाहकार से परामर्श करने से सबसे उपयुक्त विकल्प निर्धारित करने में मदद मिल सकतीहै।
निष्कर्ष
म्यूचुअल फंड या इक्विटी मार्केट में निवेश करते समय एक योग्य वित्तीय सलाहकार आपके निवेश को सुरक्षित, संतुलित और लक्ष्य-उन्मुख बनाता है। वह न केवल सही फंड/शेयर चयन में मदद करता है, बल्कि जोखिम प्रबंधन, टैक्स प्लानिंग, और अनुशासित निवेश की रणनीति भी देता है—जो दीर्घकालिक संपत्ति निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
Mutual Fund/Equity Market में नए युवाओं के लिए अच्छा कॉर्पस कैसे बन सकता है और कितना बन सकता है?
1. शुरुआत कैसे करें?
सबसे पहले, अपना KYC (Know Your Customer) पूरा करें, जो निवेश के लिए जरूरी है। KYC एक बार की प्रक्रिया है और इसे आप ऑनलाइन या किसी डिस्ट्रीब्यूटर की मदद से कर सकते हैं।
निवेश शुरू करने के लिए आप म्यूचुअल फंड की वेबसाइट, फिनटेक प्लेटफॉर्म, या किसी AMFI रजिस्टर्ड डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से खाता खोल सकते हैं।
निवेश के दो मुख्य तरीके हैं:
SIP (Systematic Investment Plan): हर महीने छोटी राशि निवेश करें।
लंपसम (एकमुश्त): एक साथ बड़ी राशि निवेश करें।
2. अच्छा कॉर्पस बनाने के लिए रणनीति
SIP से शुरुआत करें: आप ₹500/₹1000 से भी SIP शुरू कर सकते हैं। यह धीरे-धीरे बड़ा कॉर्पस बनाने का सबसे अनुशासित और आसान तरीका है।
लक्ष्य निर्धारित करें: अपने निवेश का उद्देश्य (जैसे घर खरीदना, रिटायरमेंट, बच्चों की पढ़ाई) स्पष्ट रखें। इससे सही फंड और समय सीमा चुनने में मदद मिलेगी।
डायवर्सिफाई करें: एक ही फंड या सेक्टर में पैसा लगाने के बजाय, अलग-अलग कैटेगरी (Equity, Hybrid, Debt) के फंड्स में निवेश करें।
लंबी अवधि का नजरिया रखें: इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में 7-10 साल या उससे ज्यादा समय तक निवेश करने से कंपाउंडिंग का फायदा मिलता है और बड़ा कॉर्पस बनता है।
रिटर्न की उम्मीद: ऐतिहासिक रूप से, इक्विटी म्यूचुअल फंड्स ने 12-15% सालाना तक का औसत रिटर्न दिया है, लेकिन यह निश्चित नहीं है और बाजार जोखिम के अधीन है।
3. कितना कॉर्पस बन सकता है? (SIP कैलकुलेशन उदाहरण)
मासिक SIP अवधि (साल) अनुमानित रिटर्न (12% वार्षिक) संभावित कॉर्पस
₹2,000 10 12% ~₹4.6 लाख
₹5,000 15 12% ~₹25 लाख
₹10,000 20 12% ~₹76 लाख
नोट: यह गणना कंपाउंडिंग के आधार पर है और बाजार के उतार-चढ़ाव के अनुसार रिटर्न अलग हो सकता है।
4. निवेश के लिए सुझाव
जितनी जल्दी निवेश शुरू करेंगे, उतना बड़ा कॉर्पस बनेगा (पावर ऑफ कंपाउंडिंग)।
SIP के माध्यम से निवेश को जारी रखें, भले ही बाजार में गिरावट हो।
समय-समय पर पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और जरूरत के अनुसार फंड में बदलाव करें।
यदि खुद फंड चयन या पोर्टफोलियो मैनेजमेंट में असहज हैं, तो AMFI रजिस्टर्ड डिस्ट्रीब्यूटर या फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद लें।
5. निष्कर्ष
नए युवाओं के लिए म्यूचुअल फंड/इक्विटी मार्केट में अच्छा कॉर्पस बनाना संभव है—जरूरत है अनुशासन, धैर्य और सही रणनीति की। SIP के जरिए छोटी राशि से शुरुआत कर के लंबी अवधि में बड़ा फंड तैयार किया जा सकता है।
रिटायरमेंट की प्लानिंग कैसे करें?
1. रिटायरमेंट प्लानिंग की शुरुआत कब और कैसे करें?
जितनी जल्दी हो सके निवेश शुरू करें, ताकि आपको कंपाउंडिंग का अधिक लाभ मिल सके और बड़ा कॉर्पस तैयार हो सके।
अपनी रिटायरमेंट की जरूरतों का आकलन करें—रिटायरमेंट के बाद हर महीने कितना खर्च चाहिए, स्वास्थ्य, यात्रा, और आकस्मिक खर्चों को भी शामिल करें।
मुद्रास्फीति (महंगाई) को ध्यान में रखते हुए भविष्य की जरूरतों का अनुमान लगाएं। उदाहरण: आज ₹50,000/माह की जरूरत है तो 30 साल बाद यह जरूरत करीब ₹2.9 लाख/माह हो सकती है।
2. निवेश के विकल्प
निवेश विकल्प अनुमानित रिटर्न विशेषताएँ
म्यूचुअल फंड SIP 12-15% उच्च रिटर्न, बाजार जोखिम, लंबी अवधि में बड़ा कॉर्पस
NPS (नेशनल पेंशन) 8-10% टैक्स लाभ, कम लागत, रिटायरमेंट के लिए उपयुक्त
PPF (पब्लिक प्रोविडेंट फंड) 7.1% सुरक्षित, टैक्स फ्री, 15 साल की लॉक-इन
सरकारी योजनाएं 7-8% स्थिर, सुरक्षित, टैक्स लाभ
SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में नियमित निवेश अनुशासन और कंपाउंडिंग का फायदा देता है।
NPS और PPF जैसी सरकारी योजनाएं सुरक्षित और टैक्स लाभ देती हैं।
एक संतुलित पोर्टफोलियो के लिए SIP और सरकारी योजनाओं का मिश्रण सबसे बेहतर है।
3. रिटायरमेंट प्लानिंग के मुख्य स्टेप्स
अपनी वर्तमान आय, खर्च और भविष्य के लक्ष्यों का विश्लेषण करें।
हर महीने एक निश्चित राशि निवेश के लिए तय करें।
निवेश को अलग-अलग विकल्पों में बांटें (डायवर्सिफिकेशन) ताकि जोखिम कम हो और रिटर्न बेहतर मिले।
इमरजेंसी फंड जरूर बनाएं, ताकि अचानक जरूरत पर निवेश तोड़ना न पड़े।
समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और जरूरत के अनुसार बदलाव करें।
रिटायरमेंट के समय SWP (Systematic Withdrawal Plan) के जरिए म्यूचुअल फंड से नियमित आय प्राप्त कर सकते हैं।
4. कितना कॉर्पस बन सकता है? (उदाहरण)
अगर आप 30 साल तक हर महीने ₹10,000 SIP करते हैं और औसतन 12% रिटर्न मानें, तो रिटायरमेंट पर करीब ₹3.5 करोड़ का फंड बन सकता है।
अगर NPS/PPF में निवेश करते हैं तो रिटर्न थोड़ा कम होगा, लेकिन सुरक्षा और टैक्स लाभ मिलेगा।
5. सलाह
जितना जल्दी शुरू करेंगे, उतना बड़ा कॉर्पस बनेगा।
निवेश का चुनाव अपनी जोखिम क्षमता, उम्र और लक्ष्यों के अनुसार करें।
जरूरत हो तो किसी अनुभवी वित्तीय सलाहकार या AMFI रजिस्टर्ड डिस्ट्रीब्यूटर की मदद लें।
रिटायरमेंट प्लानिंग का सही तरीका है—जल्दी शुरुआत, अनुशासित निवेश, सही विकल्पों का चयन और समय-समय पर समीक्षा। इससे रिटायरमेंट के बाद भी वित्तीय स्वतंत्रता और आरामदायक जीवन सुनिश्चित किया जा सकता है।
बच्चों की शादी या शिक्षा के लिए म्यूचुअल फंड निवेश: सबसे बेहतर विकल्प
1. क्यों चुनें म्यूचुअल फंड?
म्यूचुअल फंड, खासकर SIP (Systematic Investment Plan) के जरिए, बच्चों की शिक्षा या शादी जैसे दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए अनुशासित और प्रभावी निवेश का विकल्प है।
यह निवेश महंगाई (Inflation) को मात देने में सक्षम है, जिससे भविष्य में बढ़ती शिक्षा या शादी की लागत को आसानी से कवर किया जा सकता है।
2. बच्चों की शिक्षा/शादी के लिए म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है?
लंबी अवधि के लिए: अगर आपके पास 7-10 साल या उससे ज्यादा का समय है, तो इक्विटी या बैलेंस्ड (Hybrid) म्यूचुअल फंड में SIP सबसे अच्छा विकल्प है।
रिटर्न: ऐतिहासिक तौर पर, इक्विटी म्यूचुअल फंड्स ने 12% तक वार्षिक औसत रिटर्न दिया है, जिससे बड़ा कॉर्पस बनाना संभव है।
लचीलापन: जरूरत के मुताबिक आप SIP की राशि बढ़ा सकते हैं और जब चाहें आंशिक निकासी कर सकते हैं।
3. निवेश की रणनीति
SIP से शुरुआत करें: हर महीने एक निश्चित राशि (जैसे ₹2000, ₹5000 या जितना संभव हो) निवेश करें।
लक्ष्य तय करें: शिक्षा या शादी के लिए कितनी राशि चाहिए, उसकी गणना करें और उसी हिसाब से SIP प्लान करें।
इन्फ्लेशन का ध्यान रखें: शिक्षा और शादी की लागत हर साल बढ़ती है, इसलिए रिटर्न और लक्ष्य दोनों को इन्फ्लेशन के अनुसार तय करें।
4. अन्य विकल्पों की तुलना
निवेश विकल्प रिटर्न (औसत) टैक्स लाभ जोखिम उपयुक्तता
म्यूचुअल फंड (SIP) 10-15% LTCG मध्यम/उच्च लंबी अवधि, महंगाई को मात देने के लिए
PPF 7.1% EEE कम सुरक्षित, टैक्स फ्री, 15 साल की लॉक-इन
सुकन्या समृद्धि योजना 7.6% EEE कम बेटियों के लिए, टैक्स फ्री
चाइल्ड ULIP 6-10% LTCG मध्यम बीमा + निवेश, अनुशासन
डेट फंड/RD 5-7% कुछ कम शॉर्ट टर्म, कम जोखिम
5. कितना फंड बन सकता है? (उदाहरण)
अगर आप 10 साल तक हर महीने ₹10,000 SIP करते हैं (12% अनुमानित रिटर्न), तो करीब ₹23 लाख का फंड बन सकता है।
15-20 साल के लिए SIP करने पर यह फंड 50 लाख से 1 करोड़ तक भी पहुंच सकता है, जो उच्च शिक्षा या शादी के लिए पर्याप्त है।
6. कब कौन सा विकल्प चुनें?
लंबी अवधि (7+ साल): म्यूचुअल फंड SIP, इक्विटी या बैलेंस्ड फंड्स।
मध्यम अवधि (3-7 साल): बैलेंस्ड या डेट ओरिएंटेड हाइब्रिड फंड्स।
छोटी अवधि (<3 साल): डेट फंड्स, RD, या PPF/सुकन्या समृद्धि योजना (अगर बेटियां हैं)।
निष्कर्ष
बच्चों की शादी या शिक्षा के लिए म्यूचुअल फंड, खासकर SIP के जरिए, सबसे बेहतर और लचीला विकल्प है—यह महंगाई को मात देता है, लंबी अवधि में बड़ा फंड बनाता है और जरूरत के समय लिक्विड भी रहता है।
साथ ही, PPF, सुकन्या समृद्धि योजना, और चाइल्ड ULIP जैसे विकल्पों को पोर्टफोलियो में शामिल कर जोखिम और सुरक्षा का संतुलन बना सकते हैं।
सुझाव: निवेश की शुरुआत जितनी जल्दी करेंगे, फंड उतना बड़ा बनेगा। अपने लक्ष्य, समयावधि और जोखिम क्षमता के अनुसार फंड चुनें और समय-समय पर निवेश की समीक्षा करें।
"100 minus आपकी उम्र" नियम: समझ और विवरण
यह नियम पोर्टफोलियो में इक्विटी (शेयर बाजार) और सुरक्षित निवेश (जैसे बॉन्ड) के बीच संतुलन बनाने का एक सरल तरीका बताता है। आइए इसे चरणों में समझें:
1. नियम का सार:
फॉर्मूला: इक्विटी में निवेश (%) = 100 - आपकी उम्र
शेष हिस्सा: बॉन्ड, FD, सोना जैसे कम रिस्क वाले निवेश में।
उदाहरण:
अगर आपकी उम्र 30 साल है:
इक्विटी = 100 - 30 = 70%
बॉन्ड = 30%
अगर उम्र 60 साल है:
इक्विटी = 100 - 60 = 40%
बॉन्ड = 60%
2. नियम का तर्क:
युवा निवेशक (कम उम्र):
समय का लाभ: मार्केट में उतार-चढ़ाव को संभालने के लिए ज्यादा समय मिलता है।
हाई रिटर्न की संभावना: इक्विटी लंबे समय में बॉन्ड से बेहतर परफॉर्म करती है।
वरिष्ठ निवेशक (ज्यादा उम्र):
सुरक्षा जरूरी: रिटायरमेंट के नजदीक होने पर पूंजी को रिस्क से बचाना चाहिए।
स्थिर आय: बॉन्ड से नियमित आमदनी मिलती है।
3. नियम के वेरिएशन:
110 या 120 minus उम्र:
आजकल लोग लंबी उम्र जीते हैं, इसलिए कुछ विशेषज्ञ इक्विटी एक्सपोजर बढ़ाने की सलाह देते हैं।
उदाहरण: 30 साल की उम्र में 110 - 30 = 80% इक्विटी।
4. नियम के फायदे:
सरलता: कोई भी आसानी से अपना एसेट एलोकेशन तय कर सकता है।
अनुशासन: उम्र बढ़ने के साथ रिस्क अपने-आप कम होता जाता है।
लॉन्ग-टर्म फोकस: इक्विटी के जरिए धन का विकास।
5. सीमाएं और सावधानियां:
व्यक्तिगत जरूरतें नजरअंदाज: रिस्क टॉलरेंस, आय, लक्ष्य (जैसे बच्चों की पढ़ाई/घर खरीदना) को ध्यान में नहीं रखता।
मार्केट कंडीशन: कभी-कभी बॉन्ड भी रिस्की हो सकते हैं (जैसे ब्याज दर बढ़ने पर)।
इन्फ्लेशन: सुरक्षित निवेश इन्फ्लेशन को मात नहीं दे पाते, जिससे खरीदने की क्षमता घट सकती है।
6. कब लागू न करें?
अगर आपका हाई रिस्क टॉलरेंस है, तो इक्विटी का प्रतिशत बढ़ाएं।
अगर नियमित आय के स्रोत (जैसे रेंटल इनकम) हैं, तो इक्विटी में ज्यादा निवेश कर सकते हैं।
शॉर्ट-टर्म गोल (5 साल से कम) के लिए यह नियम उपयुक्त नहीं है।
7. समय के साथ समायोजन:
हर साल अपनी उम्र और पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करें।
उदाहरण: अगर इक्विटी 70% से बढ़कर 80% हो जाए, तो कुछ शेयर बेचकर बॉन्ड खरीदें।
8. वैकल्पिक रणनीतियां:
टार्गेट-डेट फंड: म्यूचुअल फंड जो अपने-आप उम्र के हिसाब से एलोकेशन बदलते हैं।
डायवर्सिफिकेशन: इक्विटी के अंदर भी लार्ज-कैप, मिड-कैप, इंटरनेशनल शेयरों में निवेश करें।
निष्कर्ष:
"100 minus उम्र" नियम शुरुआती निवेशकों के लिए एक अच्छा गाइड है, लेकिन इसे अपनी जरूरतों के हिसाब से एडजस्ट करें। अगर समझ न हो, तो किसी वित्तीय सलाहकार से सलाह लें। याद रखें: निवेश में कोई "वन-साइज-फिट्स-ऑल" फॉर्मूला नहीं होता!
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